खुद की चिता जला दी है अब कुछ अरमानो के साथ में।
आखरी मंजिल मिलने तक ग़ालिब अब मैं नहीं मारूंगा||

"कोशिशों की जंग में अगर मैं खो दूं, ये नश्वर शरीर,
तो काली रात के अंधेरों में ही जलाना, मेरी चिता को,
मैं आखरी दम तक अंधेरों में दिए जलाना चाहता हूँ"

||दो अल्फाज कह देता हूँ तुजसे कि अब मैं कुछ कहूँगा नहीं।|
॥गर किा हो इश्क दिल से कभी तो, ख़ामोशी पढ़ लेना मेरी॥

एक दृश्य, टेहरी बाँध के नजदीक

यह बाँध गंगा नदी की प्रमुख सहयोगी नदी भागीरथी पर बनाया गया है। टिहरी बाँध की ऊँचाई २६१ मीटर है जो इसे विश्व का पाँचवा सबसे ऊँचा बाँध बनाती है।

Wednesday, December 19, 2012

सम्भल जाओ मेरे समाज के ठेकेदारों, वरना


सम्भल जाओ मेरे समाज के ठेकेदारों,
ये सभ्य समाज है इसे खूंखार न बनाओ।

छोड़ दो ये आदतें बचकानी,
किसी की इज्जत की कीमत लगानी।

किसी की मर्दानगी का नहीं, ये सबूत है तुम्हारी ना-मर्दानगी का।
जो हो रहा क़त्ल -ए-आम, नारी कि इज्जत और जवानी का।

घडियाली आंशू यूं हमारी बेबसी पर बहाना छोड़ दो।
बेशर्मों अगर नहीं बस का तो अपने मुंह पे कालिख पोत दो।

जिन्होंने तुम्हे पंहुचा दिया है फलक तक,
भूलना मत, वो जमीन पर भी पटक सकते हैं।

अभी तो सिर्फ नपुंसक कहा है तुम्हे,
अगर भड़के तो नपुंसक भी बना सकते हैं।

लकड़ियाँ भी कम पड़ जाएँगी फिर, तुम्हारी अर्थी सजाने में।
दो पल नहीं लगेंगे, गुनेह्गारो के साथ, तुम्हे जलाने में।

वक्त है अभी, सम्भल जाओ मेरे समाज के ठेकेदारों,
ये सभ्य समाज है इसे खूंखार न बनाओ।

Thursday, December 13, 2012

कहानी मेरी नयी जंग की



माना की ये जंग जो हमने छेड़ी है, पत्थर के उपर पेड़ उगाने की है,
लेकिन हमारे इरादों के तूफान, इसे थोड़ी मिट्टी जरूर देंगे।
रोपेंगे हम इसे, आपके समर्थन नुमा पानी से,
अगर फल ना भी मिल पायें तो क्या, चटकती धुप में छाँव तो लेंगे।

किसी ने हां कहा तो किसी ने ना कहा,
मेरी इस नयी जंग में हर किसी ने दिया बयां,
कोई कहता तू पहुँच जायेगा फलक तक,
तो किसी ने कहा मुन्ना, जमीन में सिमट जायेगा।

दिल और दिमाग में सुनामी सा कुछ आया है,
हाँ और ना दोनों ही टीमों ने मुझे सताया है,
ना की ना सुनो तो कहेंगे कल, "बेटा हमने पहले ही कहा था",
और गर हाँ की न सुनो तो कहेंगे "तू कहता बहुत है।"

कोई कहता साथ हैं हम तेरे, तो कोई अकेले मरने की देता दुआ,
अगर साथ मिल जाये इस नयी जंग में किसी का,
तो हम खुश किस्मत हैं,



Wednesday, December 12, 2012

पहाड़ों की पुकार


भरे पन्नों और किताबों की जरूरत नहीं है,
बस एक शब्द बन जाये, जो कारवां हिला दे,
लाखों हजारों मशालों का क्या करूँ मैं,
एक चिंगारी बहुत है, जो सब को जला दे।
ये पहाड़ों की धरती आज कुछ कह रही है
खुद भी समझ ले और सब को सुना दे।


मेरे आँचल में खुशियाँ क्या कम हैं?
जो भटकता है तू दर-ब-दर,
खेत में उग जाएँ हीरे, और जंगल में मोती,
थोड़ी से जान ले गर तू कदर
ये पहाड़ों की धरती आज कुछ कह रही है
खुद भी समझ ले और सब को सुना दे।