हम रुकना नहीं चाहते, तन्हा इन राहों में,
क्या करें कमबख्त आगे रास्ता ही नहीं है,
इन हाथों में मशालें तो बड़ी-बड़ी हैं,
बस कोई जला के इन्हे रोशन करता ही नहीं है|
ये मंज़िल धुंधली सी क्यों पड़ गयी है,
मेरी सपनो की कहानी अधूरी से क्यों हुई है,
रात के अँधेरे में हमने तो लिया था जुगनू का सहारा
फिर ये सुबह की किरण बुझ क्यों रही है|
सपनो में भाग पड़ते है बड़ी तेजी से,
फिर दिन में ये राहें, थम क्यों गयी हैं,
हम तो साथ लेके सब को चले थे,
अब हर निगाह बदल क्यों गयी है|
कह दे, जहाँ से में तन्हा नहीं हूँ,
रुसवा हूँ, लेकिन बदला नहीं हूँ,
गर चल जाये थोड़ी से ये हवा तो,
मैं उड़ जाऊं गगन में,
परेशां हूँ थोडा, हारा नहीं हूँ|
बदल के जमाना हम भी बदल जायेंगे,
मंजिल पे अपनी हम चढ़ जायेंगे,
जरा साथ दे दे, तू ए मेरे दोस्त,
दुनिया को हम भी दिखा जायेंगे|