Thanks for being my friend..................
"बहुत दिनों से तुम्हे एक बात कहनी है, जो मैं आज भी नहीं कह पा रहा हूँ, उम्मीद है की मेरी खामोसी सब बयां कर चुकी होगी"-------------Balbant Gosain
यह बाँध गंगा नदी की प्रमुख सहयोगी नदी भागीरथी पर बनाया गया है। टिहरी बाँध की ऊँचाई २६१ मीटर है जो इसे विश्व का पाँचवा सबसे ऊँचा बाँध बनाती है।
मुझे गाड़ी की आवाज सुनाई दी, मैंने अपने नर्म हाथों से अपने छोटी से आँखों की धुंधलाहट को साफ किया, तो गाड़ी का दरवाजा खुलता दिखाई दिया, चाँद सा चेहरा और हाथ में फूलों का गुलदस्ता लिए, वो एकदम परी सी लग रही थी, उसमे मुझे अपनी माँ-सी नजर आयी साथ मैं और लोग भी थे शायद घर वाले थे| वो लोग गाड़ी से उतर कर आगे बढ़ गए, एक बड़े से शादी के हाल की तरफ, बहुत से लोग आ रहे थे अच्छे-अच्छे पोशाक में| मैं अपनी मन की आँखों से झाँक ही रही थी कि एक और गाड़ी रुकी कोई 22-24 साल का लड़का उतरा और हाल के अंदर चला गया, वो पापा थे शायद पर दोनों अलग अलग क्यों आये, फिर मैंने अपने आप को डांटा बुद्धू अभी तो मिले ही नहीं तो एक साथ कैसे आ सकते है, सबकी अच्छी अच्छी ड्रेस, गाड़िया और गहने देखकर मेरे मन मैं भी सपने जाग गए मैं भी ऐसे ही किसी पार्टी मैं सज धज के जाउंगी
ये मेरे ख़ुशी में झुमने का समय था, वो दोनों मिल रहे थे, मिल वो रहे थे ख़ुशी मुझे हो रही थी| कौन? भूल गए क्या? अभी तो बताया मम्मी और पापा, अन्दर जाते ही जैसे उन्होंने एक दुसरे को देखा बस देखते ही रह गए, मैं खुश हुयी, इतने ख़ूबसूरत मम्मी पापा मुझे मिले मुझे भी खुश रखेंगे, सिर्फ इतना ही नहीं, मुझे तो तुम्हारी दुनिया में आने कि भी जल्दी थे, और जितनी जल्दी वो मिलते मैं आपकी दुनियां में पहुँच जाती, मेरे भी सपने थे, स्कूल जाना, घूमना, गाना और नजाने क्या क्या| लेकिन सपने तो सपने होते हैं ना, मेरे सपनो को छोडिये मेरे मन को देखिये उनके मिलने से कितना खुश हो रहा था उन दोनों को उसी शाम एक दुसरे से प्यार हो गया जब भी मौका मिलता एक दुसरे को देख कर मुस्करा जाते, दोनों का हाल कुछ इस तरह था|
ये क्या, दो दिन भी नहीं बीते यहाँ तो घंटो बातें होने लगी, ये तो मैं भी नहीं जान पायी, क्या फास्ट लव स्टोरी थी, दो दिन और बीते और साथ में घूमना फिरना भी होने लगा, उनका प्यार जिस तरह परवान चढ़ रह था उसके चार गुना ज्यादा मेरे सपने मेरे आँखों में खुशियाँ बढ़ाये जा रहे थे, वो आपस मैं गुफ्तगू करते और सोचते की उनकी बातें कोई नहीं सुन रहा, ऑंखें बंद की जा सकते है और कान भी लेकिन मेरे तो मन की आंखे थी जिन से मैं देख रही थी कोई कैसे रोक सकता था मुझे, और फिर गुनाह भी क्या कर रही थी अपने होने वाले माँ बाप को ही तो देख रही थी|
वो दोनों सुमुद्र की लहर की तरह जितनी जल्दी पास आये उससे भी जल्दी अलग हो गए, सही कहते हैं नजदीकियां दूरियां को और दूरियां नजदीकियों को बढ़ा देती हैं| हम जितनी जल्दी किसी के करीब आते हैं हमारा दिल चाहता है वो शक्श हम से हर बात को बांटे, हमारी हर ख़ुशी में मुस्कराए और हर गम में साथ बैठ के रोये, प्यार अच्छे वक्त को एक साथ बीताने से नहीं, बल्कि गम की आंधियों में एक साथ बैठ के रोने से कहीं ज्यादा बढता है|
यही उन दोनों के बीच में नहीं हो पाया, वो शायद प्यार नहीं सिर्फ आकर्षण था, वो दोनों शायद कभी न मिलने के लिए अलग हो रहे थे| वो आँखों से रो रहे थे मगर मैं दिल, वो एक दुसरे से बिछुड़ रहे थे और मैं जिंदगी से, मेरे सारे सपने टूट गए मैं खुद एक सपना थी, जो किसी की जुदाई से जमीन पर बिखर चुकी थी, आपकी दुनिया मैं आने का वो मेरा सपना सपना ही रह गया, मैं आँखों से नहीं रो पाई आँखे तो थी नहीं सिर्फ मन के आँखों से अपना अंत देख रही थी, फिर मेरे दिल मैं एक उम्मीद उठी, मैंने खुदा को याद किया कि उनकी दूरियों को नाराजगी में बदल दे, अगर उनके बीच में प्यार नहीं था फिर भी मेरे खातिर तो उन्हें मिला दे|
मैं अपने सपनो की दुनिया से हटकर, गहरी नीद मैं थोड़ी देर पहले सोयी थी की अचानक को तेज आवाज कानो में टकरा गयी, जैसे कोई जोर जोर से गाने बजा रहा था| मैंने आंखे खोली तो ये क्या कोई पार्टी का माहोल
है, शायद ऊपर वाले ने मेरी सुन ली, वो दोनों पास खड़े होकर बात कर रहे थे, मेरे आँखों में सपने वापिस इस तरह लौट आये जैसे बसंत आने पर सुखी डालियों पर पत्ते और फूल| पता नहीं चला कब अलग हुए और कब मिले मैंने उपर वाले का शुक्रिया किया, कितना अच्छा लगता है जब ऊपर वाला अपनी सुन लेता है ऐसा लगता है जैसे दुनिया मैं बस सब के साथ अच्छा ही होता है|
बजह तो देखो अलग होने की, ये भी आम बात थी मम्मी को लगा पापा किसी और से बात करते है, उनसे प्यार नहीं करते, इस दूरी ने उनका प्यार और भी बड़ा दिया था बातें करने का टाइम इस तरह बढ़ गया जैसे पार्ट टाइम जॉब फुल टाइम हो गयी हो, दिन भर मैं 4 घंटे की जगह 6 घंटे बातें होने लगी थे, महीने की 2 डेट अब 8 और 10 में बदल गयी, माँ पापा के घर जाने लगी थी अकेले ज्यादा ही मिलने लगे थे वो लोग, चोंखिए मत वो 70 के दशक में नहीं 21 वीं सदी में जी रहे थे, दूरियों के बाद इतना प्यार क्या बात है दूरियां जरूरी है वाकई बहुत जरूरी हैं|
मेरे सपने अब यकीन में बदल गए, उन दोनों का घंटो एक कमरे में बंद रहना, आपके शक को बढ़ता होगा मगर मेरी सपनो को मजबूत कर रहे थे, उस बंद कमरे में उनके बीच जो कुछ भी हुआ उसने मुझे बहुत खुश किया, सच यही था की वो मेरे आने की तयारी कर रहे थे, जैसे जैसे दिन बीत रहे थे मेरी खुशिया बढती जा रही थी आपकी दुनियां और मेरे मन की दुनिया के बीच की दूरी कम हो रही थी|
मैं सपनो की दुनिया को छोड़ कर आपके शहर की और बढ़ने लगी, रास्ते में पहुंच गयी थी, अपनी माँ की कोख में, कितनी ख़ुशी हुयी होगी मुझे, मेरे खुशिया असमान की तरह फ़ैल चुकी थी, सागर के पानी की तरह बढ़ गयी थी बस चंद दिन तो बाकि थे आपसे मिलने के लिए|
देखते देखेते तीन-चार मास बीत गए, मेरी आँखों में कई तरह के सपने आने लगे, मैं आपकी दुनियां में आउंगी सब खुशियाँ मनाएंगे, मुझे प्यार करेंगे, बड़ी होकर स्कूल जाउंगी, बहुत पड़ने का सपना, दोस्तों के संग पार्टी और फिर एक आम लड़की की तरह शादी का सपना, मैंने एक पल में न जाने कितनी बार ये सपने देखे, हाँ साथ में एक और सपना देखा ऐसे ही एक सोच को अपने कोख में पालने का सपना,
लेकिन इंसान की खुशियों के आगे किसी और की खुशियों की कहाँ चलती है, इससे पहले की मेरे सपने यकीन में बदल पाते, एक आफत की बाढ़ सी मेरी जिंदगी में फिर से आ गयी, मेरी माँ मेरे आने से खुश नहीं थी, मुझे लगा शायद इस बात से परेशान है की शादी से पहले दुनिया के सामने कैसे लाएगी, फिर मैंने अपने दिल को नए तरीके से शांत किया की शायद पापा को तो मेरे आने से ख़ुशी होगी|
उस शाम वो दोनों मिले लेकिन उनकी बातों ने मेरे हर सपने को जड़ से मिटा दिया:
दोनों मैं गुप्तगू फिर से शुरू हो गयी
"तुम्हे पता है मेरे पेट में बच्चा पल रहा है|" मेरी माँ ने जैसे मेरी गलती की शिकायत मेरे बाप से की हो|
"तो क्या हुआ" मेरे पापा ने मुस्कराते हुए जबाब दिया|
"तो क्या मतलब, इस बोझ के साथ में आपनी जिंदगी कैसे काटूँगी, मेरे कई सपने है मैं इसके साथ अपने लाइफ नहीं जी सकती समझे" वो मेरी माँ गुस्से में बोली अब तो माँ कहना भी अजीब सा लग रहा था
"ओह डोंट वोर्री डार्लिंग उसका भी जुगाड़ कर लेंगे बहुत सारे डोक्टर को जनता हूँ मैं" बस कुछ पल की देरी थी मेरी दुनिया तबाह होने वाले थी, वो दोनों तो अपने बातो को बहुत हल्के में कह गए, पर वो मेरे सपनो पर कितने जोर से गिरे ये सिर्फ मैं जानती हूँ|
उपर वाले से उम्मीद लगाने से तो शायद कुछ भला नहीं होने वाला था फिर भी मैंने आस लगायी, दुनियां मानती है की डॉक्टर भी भगवान् का रूप होता है लेकिन वो भी मेरे जिंदगी के रास्तों में हत्यारे निकले, मैं तो मजबूर थी जो दुसरे के सपनो के लिए बलि चढ़ाई जाने वाली थी, कैद में थी न भाग सकती थी और न चिल्लाकर मदद मांग सकती थी, इतनी बड़ी भी नहीं हुयी थी की अपने माँ पर लात चला सकती थी क्योंकि अभी तो मैंने अपने सारे अंग भी नहीं पाए थे,
फिर मुझसे क्या गलती हो गयी थी जिसकी सजा मुझे मिल रही थी, दो मतलबी इंसानों के चार दिन के आनंद ने मुझे सपने की तरह बड़ा कर दिया, अगली सुबह मेरी विदाई की तैयारी होने लगी, एक नन्नी सी जान नन्नी सी जान भी नहीं अधूरी जान से लड़ने इतने सारे लोग, ये किस बात के इंसान थे जो एक असहाय जो बोल भी नहीं सकती, ऐसी जान को मारने शश्त्र ले कर बढ़ रहे थे, वो मेरे माँ बाप कैसे थे, जो मेरे बलि खुद चढाने जा रहे थे, मेरे दिल ने बस मुझ से यही कहा जो दुनिया इतनी दूर से भी भयानक है वो पास से कितनी होगी| वो युद्ध भूमि मैं मुझ से लड़ने आ रहे थे, मगर मैं असहाय थी, मैं आंखे बंद कर ली, आपकी दुनिया को अलविदा कह दिया, किसी से भी अपनी गलती जानने की कोशिश भी नहीं की, बस यही कहा की बहुत गन्दी है आपकी दुनिया जिसमे मेरी अधूरी कहानी अधूरी ही रह गयी.
जर्रा जर्रा जब जहाँ का तेरा ही निशां है, फिर अलग सा क्यों मुझे बनाया है| खुशियों की कश्ती क्यों मेरी सागर में खो गयी| क्योंकि शायद मैं एक लड़की हूँ| नजराने पेश करूँ क्या मैं खिड़की हूँ? आने पे उसके सबने खुशियाँ मनाई थी, मेरे आने से फिर क्यों बत्तियां बुझाई थी| बाबा ने भाई को जब स्कूल भेजा था, मैंने तो अक्षरों को सिर्फ खेतों में देखा था| बचपन ये सारा मेरा ऐसे क्यों रो गया| क्योंकि शायद मैं एक लड़की हूँ| नजराने पेश करूँ क्या मैं खिड़की हूँ? योवन के रंग में जब सबने खेली थी होली, माँ बोली आजा बच्चा बैठ जा तो डोली| खुशियों के जब भी जग ने दिए जलाये थे, मैंने तो आंशु अपने चूल्हे सुखाये थे| मेरी जवानी सारी क्यों रातों में खो गयी| क्योंकि शायद मैं एक लड़की हूँ| नजराने पेश करूँ क्या मैं खिड़की हूँ? हर लम्हा हर सांस जब तेरा ही साया है, फिर खुदा मैंने क्यों तुझको न पाया है| क्योंकि शायद मैं एक लड़की हूँ| नजराने पेश करूँ क्या मैं खिड़की हूँ? |