खुद की चिता जला दी है अब कुछ अरमानो के साथ में।
आखरी मंजिल मिलने तक ग़ालिब अब मैं नहीं मारूंगा||

"कोशिशों की जंग में अगर मैं खो दूं, ये नश्वर शरीर,
तो काली रात के अंधेरों में ही जलाना, मेरी चिता को,
मैं आखरी दम तक अंधेरों में दिए जलाना चाहता हूँ"

||दो अल्फाज कह देता हूँ तुजसे कि अब मैं कुछ कहूँगा नहीं।|
॥गर किा हो इश्क दिल से कभी तो, ख़ामोशी पढ़ लेना मेरी॥

एक दृश्य, टेहरी बाँध के नजदीक

यह बाँध गंगा नदी की प्रमुख सहयोगी नदी भागीरथी पर बनाया गया है। टिहरी बाँध की ऊँचाई २६१ मीटर है जो इसे विश्व का पाँचवा सबसे ऊँचा बाँध बनाती है।

Monday, February 28, 2011

यादें लौट आती हैं

मैं एक गिरा हुआ इंसान हूँ. ये मैं अपनी तारीफ नहीं कर रहा, बल्कि किसी ने मरी तारीफ में ये शब्द कहे हैं, ये तारीफ अक्सर याद नहीं की जाती मगर जिसे आपने दुनिया में हर चीज से बढ़ कर चाह हो वो बिछुड़ते वक्त जो भी कह जाता है वो अच्छा ही लगता है, और हमें हर वक्त याद आता है. मेरा दोस्त कहता है की यादें सिगरते की तरह होती है जो धीरे धीरे ख़त्म हो जाती है मगर ये याद मेरे लिए सिगरत की फ़िल्टर की तरह है जो कभी ख़त्म नहीं होगी. ऐसा नहीं की मेरी दिल ने उसे भूलने की कोशिश नहीं की, लेकिन जब भी भुलाने की कोशिश की तो ऐसा लगता है जैसे को दूर एक ही गीत गता है जो सिर्फ मेरे लिए ही लिखा गया है जो कभी उसका पसंदीदा था और आज मेरी जरूरत. क्यों किस के दूर जाने पर सारे गम भरे गीत ऐसे लगते है मानों अपने लिए ही लिखे गए हों.

वो भी क्या दिन थे जब हम मिले थे अपनी कहानी ऐसी नहीं थी की पहली नजर में एक दुसरे को देखा और प्यार हो गया, पहली, दूसरी और फिर उस मुलाकात मैं छ: महीने से भी ज्यादा का समय था, इस मुलाकात से पहले हमने, कभी खासकर मैं कभी सोचा भी नहीं था की हम इसकदर करीब आयेंगे और फिर इतने दूर हो जायेंगे की आज हम दोनों के बीच मैं लम्बा फासला हो गया ऐसा लगता है "एक आसमान है और एक जमीन पर खड़ा इंसान, बार बार असमान को छूने की कोशिश कर रहा है मगर हर बार निराश हो जाता है" ये प्यार का अहसास पहले उस के दिल में ही जगा था और ख़त्म उससे हुआ या फिर मैंने जानबूझ कर कर दिया जब भी सोचता हूँ मेरे दिल मैं सवालों की बाद से आ जाती है

खैर छोडिये, अब यादों के शहर मैं आये है तो शैर कर ही लेते हैं, वो एक बारात की रात थी, सच कहता हूँ मैंने उससे पहले भी बात की थे मगर ऐसा ख्याल नहीं था आज तक उसके लिए दिल मैं. वो रात मेरी जिन्दगी मैं एक ऐसे पन्ने पर लिखी हुई है जिसे न मैं दिल से लगा सकता हूँ और न ही दिल से दूर कर सकता हूँ वो रत ही नहीं पिछला गुजरा हुआ साल भी उसी पन्ने में शामिल है.

ये शादी मेरे किसी करीबी की ही थे तो मैं स्टेज के पास ही खड़ा था, अचानक से वो मेरे सामने आ गयी उसने कहा "या क्या पहन के आये जो मैंने कहा था वो ड्रेस क्यों नहीं पहनी" मैंने उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया, मैं तो बस उस हूर से पारी को देखे जा रहा था, वो भी इस कदर जैसे असमान से अभी अभी उसे मेरे लिए ही उतारा गया.
"क्या हुआ" उसने मेरी और झुकते हुए बोला

"वो अच्तुअली...." मैं जबाब देने की कोशिश ही कर रहा था की वो कुछ बडबडाते हुए मेरे से दूर चली गयी
उसके जाने के बाद मुझे अहसास हुआ की उसके दिल में मेरे लिए प्यार का तूफान चल रहा था और मैंने उसे निराश कर दिया, शायद वो मेरे लिए यही गीत गुनगुनाया होगा|

क्या आवाज है और क्या शब्द है इस गीत के, कभी किसी ने हमारे लिए गया और आज हम तन्हाई में किसी गए रोज गुनगुनाया करते है. खैर छोडिये मेरे हालत को, शायद मैं ज्यादा भावुक हो रहा हूँ.

मगर उस मुलाकात के बाद ये प्यार की आंधी दोनों ओर चलने लगे थी, मैं उसकी दिलकश आवाज से भरी हुयी तस्वीर उसके दूर जाने के बाद भी अपनी आँखों मैं देखे जा रहा था. कुछ देर पहले तक मैं शांत बैठा था मगर अब तो मेरी नज़ारे चरों और सिर्फ अपनी मंजिल को ढूंढ रही थी. अगर ये कहानी किस हिंदी फिल्म की होती तो मैं वह पर सिर्फ यही गाना प्ले करवाता वो जो हमेशा ही उसकी पसंद रहा है.

वो मेरी दिलरूबा क्या खूब लग रही थी उस दिन, आज अगर कोई मरने से पहले मुझे मेरी आखरी इच्छा पूछे तो में उसी लिवास में देखना चाहूँगा. कहते है ख़ुशी के लम्हें बहुत जल्दी बीत जाते है, वो रात भी जल्द ही बीत गयी लेकिन उस रत के बीतने का कोई गम नहीं था क्यों मेरी जिन्दगी मैं ख़ुशी के लम्हे शुरू हो रहे थे. उस पूरी रात भरी महफ़िल मैं हम दोनों एक दुसरे से बाते करते रहे, दूल्हा-दुल्हन से ज्यादा हमारी चर्चा हो रही थी.

शादी का माहोल ख़त्म हो गया और हमारी कहानी शुरू हो गयी, उस मुलकात के बाद दो दिन तक मेरा फोन नहीं बजा और फिर दो दिन बाद उसका फ़ोन आ ही गया, शुरू-शुरू में एक बार फिर दो बार और फिर जब टाइम मिलता था तब बातें शुरू, फोन के बिल की किसे परवाह थी, बातें इतनी लम्बी हो गयी जैसे असमान और जमीन के बीच की दूरी.

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रूठना मानना ही प्यार में लम्बी बातें करने का जरिया होता है, और यही रूठ जाना ही तो हमे बताता है की हमारा साथी हमें कितना प्यार करता है, नयी नयी आशकी हमारे नाम तक बदल देती है, ये नाम अक्सर प्रेमी और प्रेमिका को मानाने मैं अक्सर काम आते हैं. शोना, बाबू , जानू नजाने कितने नए नाम पड़ जाते हैं, और साथ जीने मरने की कसमें अक्सर दूर हो जाने के बाद बार बार याद आती है और अगर सच्चा प्यार हो तो हर बार आपकी आँखों मैं आंशु ले आती है.

सब कुछ बिलकुल ठीक चल रहा था, दोनों की सोच जैसे एक ही हो जो उसके लिए गलत था वो मरे लिए गलत और जो मेरे लिए अच्छा था वो उसके लिए बहुत ही अच्छा था, मानों दो दूर देश के पंछी, जो एक दूसरे के लिए ही बने थे आज मिल गए थे. हमारा प्यार सच्चाई पर ठीक था, हम दोनों मैं ही नहीं उसके घर वाले भी इस बात से अनजान नहीं थे की हम दोनों के बीच में क्या चल रहा है, और शायद ये रिश्ता उन्हें भी पसंद था हम जब भी बहार जाते थे तो घर में बता के ही जाते थे.

मैं इस शहर में बहार से आया था, मेरे पास मरे नोकरी के सिवा कुछ नहीं था, नोकरी खुच खास नहीं थी मगर बुरी भी नहीं थी, उसे इस बात का हर वक्त दर रहता था की कहीं मेरी गरीबी की बजह से हमे दूर न होना पड़े, वो अपने घर वालों के खिलाफ नहीं जा सकती थी तभी तो हर वक्त मुझे पैसे बचाने की नसीहत दिया करती थी और मैं उसकी बातो को मजाक में उड़ा देता था.
कई महीने बीत चुके थे हमारी बातें अब हम दोनों से कही आगे निकल कर हमारे माँ बाप, और उन तक जो अभी पैदा भी नहीं हुए "हमारे बच्चों" तक पहुँच चुकी थी, और ये प्यार का रिश्ता एक प्यार के रिश्ते से कहीं आगे बढ़ चुका था.

सब अच्छा चल रहा था, कहते है तुम ठीक तो सारी दुनिया रंगीन लगाती है मगर जब किसी का गलत समय आता है तो समय हर रिश्ते की असलियत सामने ला कर रख देता है, अचानक से मेरी नोकरी छूट गयी, कुछ दिन तो सारे रिश्ते वैसे ही नजर आ रहे थे मगर धीरे धीरे सब कुछ बदलने लग गया था, मैं परेशान था मेरे संग वो परेशान उसका प्यार कम नहीं हुआ, लेकिन समय की साथ साथ इस प्यार की कश्ती की रफ़्तार धीमे होने लग गयी, उसके घर वाले भी अब उसके और मेरी बातो पे मुहं बनाने लग गए थे, क्यों न कर हर क्यों अपने बचे का अच्छा ही चाहता है, लेंकिन मुझे पे कुछ असर नहीं था मुझे नयी जॉब मिल चुकी थी बात कुछ खास नहीं थी लेकिन अब उसके भाषण लम्बे हो चुके थे पैसे बचावो, ये करो वो करो मुझे अच्छा लगता था मगर फिर वही मैं मजाक मैं ले लेता था, घर वालों की बजह से उसका बात करने का तरीका दिन-ब-दिन बदलता जा रहा था.

II

मुझे नयी नौकरी मिल गयी थी, हम दोनों की जिंदगी में खुशियाँ तो आई मगर जल्द ही जाने लगी, शायद उसने मुझसे अलग होने का इरादा कर लिया था. मैं समझ नहीं पा रहा था कि वो क्यों मुझसे अलग होना चाहती थी, शायद वो अपने घर वालों से परेशान थी या फिर कोई और बात उसके दिल में थी. मैंने कभी गलत नहीं सोचा, दिमाग में गलत ख्याल आते थे मगर मेरा दिल उसके बारे में गलत नहीं सोच सकता था मैं हर पल कोशिश करता रहा उसके दिल की बात जानने की, मगर जान नहीं पाया, बस खुदा से दुवा करता था की एक बार फिर से उसके दिल में मेरे लिया प्यार जगा दे|

काफी दिन गुजर गए ऐसे ही फिर मुझे महसूस हुआ किसी लड़की को ये जाताना की 'मैं तुमसे दिल से प्यार करता हूँ' दुनिया का सबसे मुश्किल कम है| लेकिन मैं उम्मीद नहीं छोड़ी| छोड़ कैसे सकता हूँ मैं साँस लेना भी तो नहीं भूलता|

चार महीने,  लड़ते-झगड़ते बीत गए, वो मुझे दिखाते रही की वो मुझसे बहुत नफरत करती है मगर अलग भी नहीं हो पाई, मैं समझ नहीं पा रहा था की वो मुझसे नफरत का सिर्फ दिखावा कर रही है या फिर मैं उसे अपने से अलग नहीं होने दे रहा था. दो दिन अच्छे से बात होती मगर फिर वही, मैं समझ नहीं पा रहा था या फिर मैं खुदगर्ज हो गया था जो अपने खुसी के आगे उसकी दिल की नहीं सुन रहा था, मैंने आखरी कोशिश की उसे समझाने की, लेकिन उसने उसने मरी बातो का इस तरह जबाब दिया जैसे अपने बीच में कभी कुछ था ही नहीं.

लेकिन अब मैं कमजोर पड़ता जा रहा था उसकी नफरत की आगे, मेरा दिल कह रहा था ये नफरत झूठी है मगर फिर भी मेरे अन्दर ही अन्दर एक आवाज उठ रही थी और कह रही थी की कोई मुझ से एक गन्दा मजाक कर रहा है, मैं उब गया मैंने सोचा अब मुझे उससे अलग हो जाना चाहिए, अगर वो मुझे से प्यार करती है तो मैं खुद गर्ज नहीं बनाना चाहता था उसके सपनो को अपने साथ लेके बर्बाद नहीं करना चाहता था, और अगर मेरे साथ धोखा हो रहा है तो मैं ज्यादा दिन ये धोखा नहीं झेल सकता था,
लेकिन मैं गलत था और कुछ हद तक सही भी, वो सही थी और मैं गलत, वो मुझे इतना प्यार करती थी, जितना मैं सोचा नहीं था, उसने बहुत बड़े सपने मेरे लिए देखे थे, और जब उसे लगा उसके साथ रह कर मैं अपने सपने पूरे नहीं कर पावूँगा, वो मुझसे अलग होने लगी, ये सब मैंने किसी दोस्त से जाना, अब मेरी कश्ती गहरे सागर के बीच मैं थी, एक किनारा था जहाँ हम साथ रहकर भी खुश नहीं रह पाते, और दूसरा किनारा जहाँ हम अलग रह कर शायद कभी तो खुश होते, मैं नहीं वो तो कुछ हो जाती, क्यों मेरे संग तो सायद वो खुश न रह पाती, और अब मैं खुदगर्ज नहीं बनना था, मैं उससे अलग होने जा रहा था. उसे आखरी बार मिलने जा रहा था.

मैं आखरी बार उससे मिलने जा तो रहा था मगर मुझे अभी भी शक था की ये आखरी मुलाकात आखरी नहीं होगी, लेकिन अब मैं इसे आखरी मुलाकात बनाना चाहता था, ये रिश्ता इतनी आसानी से नहीं टूटने वाला था, चार महीने गम के सागर में रहने के बाद जो नहीं टुटा वो भला कैसे टूट सकता था, लेकिन टूटना भी जरूरी था, वो शाम हुयी हम मिले, मिलने से पहले जो एक तलब थी दिल में उससे नहीं लग रहा था कि हम आखरी बार मिलने जा रहे थे, मानो किसी से पहली बार मिल रहे हों, मुझे उस दिन भी उसके चहरे पर वही ताजगी वही अंदाज नजर आया जो पहली मुलाकात में नजर आया था,  मेरा दिल बार बार उसे बाँहों में लेने को डोल रहा था मगर कैसे ऐसा होता| मैं उसकी बाँहों में नहीं नजरो में गिरने गया था, मैंने कई झूठ बोले उससे और अपने मुकाम पर पहुंच गया अब मैं उसकी नज़रों मैं एक गिरा हुआ इन्सान था, हम दोनों रो रहे थे, लेकिन मजबूर इतने कि हाथ बड़ा कर आंशु नहीं पोंछ पाए एक दुसरे के, शायद मेरा सफ़र उसके साथ ख़त्म हो गया था, मुझे लगा वो मुझे याद नहीं आएगी मगर हर पल मेरे दिल के कोने मैं वो याद बन कर रहती है, लेकिन मैं आज भी उम्मीद मैं जीता हूँ, क्योंकि किस ने कहा है, "अंत हमेशा अच्छा होता है अगर अच्छा नहीं हुआ तो अभी अंत नहीं हुआ".