जर्रा जर्रा जब जहाँ का तेरा ही निशां है, फिर अलग सा क्यों मुझे बनाया है| खुशियों की कश्ती क्यों मेरी सागर में खो गयी| क्योंकि शायद मैं एक लड़की हूँ| नजराने पेश करूँ क्या मैं खिड़की हूँ? आने पे उसके सबने खुशियाँ मनाई थी, मेरे आने से फिर क्यों बत्तियां बुझाई थी| बाबा ने भाई को जब स्कूल भेजा था, मैंने तो अक्षरों को सिर्फ खेतों में देखा था| बचपन ये सारा मेरा ऐसे क्यों रो गया| क्योंकि शायद मैं एक लड़की हूँ| नजराने पेश करूँ क्या मैं खिड़की हूँ? योवन के रंग में जब सबने खेली थी होली, माँ बोली आजा बच्चा बैठ जा तो डोली| खुशियों के जब भी जग ने दिए जलाये थे, मैंने तो आंशु अपने चूल्हे सुखाये थे| मेरी जवानी सारी क्यों रातों में खो गयी| क्योंकि शायद मैं एक लड़की हूँ| नजराने पेश करूँ क्या मैं खिड़की हूँ? हर लम्हा हर सांस जब तेरा ही साया है, फिर खुदा मैंने क्यों तुझको न पाया है| क्योंकि शायद मैं एक लड़की हूँ| नजराने पेश करूँ क्या मैं खिड़की हूँ? |
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