खुद की चिता जला दी है अब कुछ अरमानो के साथ में।
आखरी मंजिल मिलने तक ग़ालिब अब मैं नहीं मारूंगा||

"कोशिशों की जंग में अगर मैं खो दूं, ये नश्वर शरीर,
तो काली रात के अंधेरों में ही जलाना, मेरी चिता को,
मैं आखरी दम तक अंधेरों में दिए जलाना चाहता हूँ"

||दो अल्फाज कह देता हूँ तुजसे कि अब मैं कुछ कहूँगा नहीं।|
॥गर किा हो इश्क दिल से कभी तो, ख़ामोशी पढ़ लेना मेरी॥

एक दृश्य, टेहरी बाँध के नजदीक

यह बाँध गंगा नदी की प्रमुख सहयोगी नदी भागीरथी पर बनाया गया है। टिहरी बाँध की ऊँचाई २६१ मीटर है जो इसे विश्व का पाँचवा सबसे ऊँचा बाँध बनाती है।

Wednesday, August 10, 2011

जिंदगी मैं तुझे

जिंदगी मैं तुझे जी कहाँ रहा हूँ,
तू तो बस कटे जा रही है|

कभी रात की तनहाइयों के उजालों में,
तो कभी दिन की सूनी तनहाइयों में,

हर महफ़िल का सूना कोना,
और हर याद का जर्रा कहता है,

मैं मजबूर हूँ और तू सिर्फ,
मुझ से दूर चले जा रही है|

मेरी हर बेदर्द, कमजोर अदा पे,
गैरों की तरह हँसे जा रही है|

जिंदगी मैं तुझे जी कहाँ रहा हूँ,
तू तो बस कटे जा रही है|


मेरे दिल की तम्मना


तेरे मेरे बीच जो दूरियां हैं,
वो मीलों में नहीं, दिलों में हैं।
प्यार के काफिले फिर दिल से चला के तो देख,
दूरियां मिट जाएगी, बिना पैर बढ़ाये|

तेरे चाँद से चहेरे को,
देखने की खता इन आँखों ने की थी|
फिर इतना दर्द मेरे दिल को क्यों दिया,
बेक़सूर ये मेरे दिल की तम्मना थी|

एक बार तो सीने से लगा दे मेरे साथी,
एक बार तो मेरे पास मुस्कराले मेरे साथी|
मैं भी सोचूंगा की तू हर वक्त मेरे साथ था,
एक बार तो मेरे जनाजे पे आजा मेरे साथी|

गर बेक़सूर है तू , बेक़सूर हूँ मैं,
तो गम-ए-जुदाई का इल्जाम किसे दें,
मान लेते हैं ये गुनाह तो अपना ही है,
बस प्यार के लिए इतना कर दें|

Monday, August 8, 2011

मैं क्या लिखूं

मैं उस भीड़ भरी तन्हाई पे क्या लिखूं,
मैं इस ज़माने की बेवफाई पे क्या लिखूं|
मेरे गिरते होंसलों को तुने आसमां कर दिया,
ये दोस्त मैं तेरी वफाई पे क्या लिखूं|

कोई मेरे बुझे दिए जला दे,
ये फितरत नहीं थी, इस ज़माने की,
मेरी अँधेरे रास्तों में, तुने जो खुद जल के उजाले किये,
तेरे उस रोशन नज़ारे पे क्या लिखूं|

मैं लिखता बड़ा हूँ यार,
पर रूक गयी, अब ये कलम,
मैं सोचता हूँ, हर पल ये मेरे खुदा,
तेरी प्यारी-सी मूरत पे लिखूं|