जिंदगी मैं तुझे जी कहाँ रहा हूँ,
तू तो बस कटे जा रही है|कभी रात की तनहाइयों के उजालों में,
तो कभी दिन की सूनी तनहाइयों में,
हर महफ़िल का सूना कोना,
और हर याद का जर्रा कहता है,
मैं मजबूर हूँ और तू सिर्फ,
मुझ से दूर चले जा रही है|
मेरी हर बेदर्द, कमजोर अदा पे,
गैरों की तरह हँसे जा रही है|
जिंदगी मैं तुझे जी कहाँ रहा हूँ,
तू तो बस कटे जा रही है|